लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के प्रावधान वाला 128वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में भी चर्चा के बाद पारित हो गया. विधेयक के पक्ष में 215 सदस्यों ने वोट किया जबकि विपक्ष में एक भी वोट नहीं पड़ा. इससे पहले महासचिव पीसी मोदी ने सदस्यों को वोटिंग की प्रक्रिया समझाई. बता दें कि अब इस बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद इस विधेयक का नाम ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ हो जाएगा. वहीं, इससे पहले इस विधेयक को लोकसभा से भी मंजूरी मिल चुकी थी.
क्या होगा इस बिल से ?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अर्जुन मेघवाल ने इस विधेयक को पेश करते हुए कहा कि, ‘यह विधेयक महिला सशक्तिकरण से संबंधित विधेयक है. इसके कानून बन जाने के बाद 543 सदस्यों वाली लोकसभा में महिला सदस्यों की मौजूदा संख्या 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी. इसके पारित होने के बाद विधानसभाओं में भी महिलाओं के लिए 33% सीट आरक्षित हो जाएगी. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी बताया कि इस विधेयक को लागू करने के लिए जनगणना और परिसीमन की जरूरत होगी. जैसे ही यह विधेयक पारित होगा तो फिर परिसीमन का काम निर्वाचन आयोग तय करेगा. इसके साथ ही मेघवाल ने पिछले 9 वर्षों में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए उपायों को भी याद किया.
1996 के बाद से सातवां प्रयास
आपको बता दें कि महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान महिला सांसदों ने सदन का संचालन किया. कई महिला सांसदों ने चर्चा के दौरान बारी-बारी से सदन की कार्यवाही का संचालन किया. इसके साथ ही राज्यसभा में विधेयक पर चर्चा के लिए साढ़े सात घंटे का समय दिया गया था, साथ ही लंच का समय समाप्त कर दिया गया था. वहीं, इस विधेयक के बारे में खास तौर पर बताएं तो इस विधेयक को विधानसभाओं के बहुमत की मंजूरी की आवश्यकता होगी. जनगणना के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन की कवायत पूरी होने के बाद इसे लागू किया जाएगा. महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के लिए साल 1996 के बाद से यह सातवां प्रयास है. बताते चलें कि इस समय यानी वर्तमान में भारत के 95 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में लगभग आधी महिलाएं हैं, लेकिन संसद में महिला सदस्यों केवल 15 प्रतिशत हैं जबकि विधानसभाओं में यह आंकड़ा 10 प्रतिशत है. हालांकि, देखने वाली बात ये होगी कि ये बिल राष्ट्रपति के पास होने के बाद से कैसा असर पड़ेगा.